Jan 30, 2008

कौन कहता है कि भारतीय नस्लवादी नहीं होते?

सबसे पहले तो आजादी के ५० साल बाद नस्लवाद शब्द को भारत मे प्रसिद्ध करने के लिए सायमंड्स और हरभजन का कोटि कोटि धन्यवाद। सायमंड्स हरभजन पर आरोप लगा कर उसे मनमाफिक सजा तो ना दिलवा पाए , पर एक बढिया काम जरूर किया है कि आम भारतीय को आईने मे झाँककर ये पूछने पर मजबूर कर दिया है कि क्या हम नस्लवादी हैं?

मैंने आईने से तो नहीं पर एक मित्र से पूछा कि क्या हम नस्लवादी हैं??उसने कहा "चल बे, सायमंड्स अपन से ज्यादा गोरा है यही नहीं वो तो फिरोज खान के बच्चों और बाराबंकी महिला महाविद्यालय की मालकिन से भी ज्यादा गोरा है, हम उसपे क्या ख़ाक टिपण्णी करेंगे ।"पर सवाल तो ये उठता है कि क्या एक काला आदमी एक अपेक्षाकृत गोरे व्यक्ति पर टिपण्णी नहीं कर सकता? मुझे तो लगता है कि कर सकता है। काले लोगों का ग्रुप बनाओ और रोज एक गोरे आदमी को पकड़ कर खूब चिढाओ, आप उससे उसके रंग का कारण पूछो, उसके खानदान तक पहुंच जाओ। न सातवे दिन वो पुलिस मे रिपोर्ट कर दे तो नाम बदल देना।

भारत मे सदियों से गोरे रंग को स्टेटस सिम्बल माना जाता रहा, आर्य द्रविड़ का खेल तो सबको याद ही होगा।हजारों साल तक ये नाटक चलता रहा।पर परेशानी तो तब हो गयी जब २०० साल पहले हमसे भी ज्यादा गोरे लोगों ने इस धरती पर कदम रखा।जब हमने उनका गौरवर्ण और कदकाठी देखी तो हम चकित रह गए। वो बिल्कुल वैसे ही थे जैसा कि धर्मग्रंथों मे लिखा था, यही नहीं हमारे कुछ बेवकूफ पूर्वज तो २०० साल तक उन्हें देवता समझ कर उनके आदेश बजाते रहे। रात दिन चेहरे पर फेयर ऎंड लवली मलने वाले, गोरी लड़कियों के ख्वाब देखने वाले, सांवली को मुँह पर रिजेक्ट करने वाले, हम लोग नस्लभेदी कैसे हो सकते हैं? हाँ रंगभेदी कहो तो बात अलग है।

भारत मे तो लोग बस प्यार करना जानते हैं, और प्यार दिखाने में हम लोग कभी झिझकते नहीं,हमारा प्यार कुछ कुछ साल बाद अचानक बहुत ज्यादा उमड़ता है ।और इतना उमड़ता है कि दिल्ली से भागलपुर तक,गुवाहाटी से गोधरा तक लोग उस प्यार को महसूस कर पाते हैं। अब हमारे शहर को ही लीजिये, हमारे शहर में पूर्वोत्तर राज्यों से कुछ लोग आते हैं कभी पढ़ने तो कभी कुछ काम करने।अब भाई उनके लिए जाने अनजाने किसी किसी के मुँह से नेपाली या चीनी निकल जाता है।कुछ दक्षिण भारतीय लोग फैक्टरियों में नौकरी करने के लिए आते हैं तो लोग उन्हें प्यार से करिया,कलूटा,कलवा,कल्बिलवा,कालू कह देते हैं। अब भारत के लोग हैं, तो ये सारे नाम प्यार से ही देते होंगे ना।अब अगर इससे भी कोई नाराज हो जाये, तो वो जाने उसका काम जाने।
अच्छा ये बताओ कि पंजाबियों का दिमाग घुटने में होता है, मराठी कंजूस होते हैं, बंगाली डरपोक होते हैं,बिहारी गुंडे होते हैं,कश्मीरी आतंकवादी होते हैं। ये सब क्या है? अरे पगले इंसान ये तो क्षेत्रवाद है,अजीब पागल हो यार!हर चीज को नस्लवाद बोलते हो!

भारतीय आपस मे ही इतना प्यार करते हैं कि क्या बताएं। कुएँ से पानी भर लेने पर जहाँ नीची जाति वालों की औरतों बेटियों का सामुहिक बलात्कार कर दिया जाता है, मंदिर मे प्रवेश करने जहाँ गाँव के गाँव जला दिए जाते हैं उस देश को आप जातिवादी कहलो भाई पर आप तो नस्लवादी का तमगा दे रहे हो वो तो सरासर गलत है।

हमारे देश मे लड़कियों को दहेज़ के लिए जिंदा जलाया जाता है, कितनों का बलात्कार तो जान पहचान वाले और रिश्तेदार ही कर डालते हैं, लड़की को या तो गर्भ मे मार दिया जाता है और अगर कहीं धोखे से पैदा हो गयी तो कुत्तों को खिलाने के लिए झाडी मे फेंक देते हैं। हाँ तो मान रहे हैं ना, कि ये सब होता है। हमने इस बात को मानने से कभी इनकार किया क्या?हम तो सीना ठोंक कर कहते हैं कि हाँ हम लिंगभेदी हैं ,कम से कम दूसरों की तरह नस्लभेदी तो नहीं हैं।

सायमंड्स मुझसे कह रहे थे कि उन्हें बिग मंकी कहलाना पसंद नहीं। मैनें उनसे कहा कि बंधू आप तो इतने मे ही गुस्सा हो गए, डार्विन को तो पोप ने बन्दर घोषित कर दिया था। हरभजन ने आपको बड़ा बन्दर कहा था तो आप उसे छोटा बन्दर कह देते, उच्छल कूद तो वो भी मचाता है । सायमंड्स बोले कि हाँ मैं तो यही बोलना चाहता था, पर पोंटिंग ने कहा कि "साले अपनी तो भद्द पिटवाओगे और साथ मे मेरी भी,तुम तो हो ही वेस्टइंडीज की पैदाईश और वो इंडिया का, तुम दोनो तो बन्दर ही हो, पर कल तुम्हारे चक्कर मे मुझे कोई मंझला बन्दर बोलने लगा तो?" इस कारण मुझे शिक़ायत करनी पड़ी। खैर मैंने सायमंड्स को समझा दिया है कि भारतीय रंगभेदी हो सकते हैं,क्षेत्रवादी हो सकते हैं , जातिवादी हो सकते हैं, लिंगभेदी हो सकते हैं पर नस्लभेदी,,,,कभी नहीं।

ऐसा जवाब दिया सायमंड्स को कि वो मुझे देखता ही रह गया।फिर उठा और फिर, ऐसा कुछ बोला "ब्लडी रेसिस्ट इंडियन",मुझे पता था कि वो मेरी तारीफ करके गया है,मेरा सीना गर्व से फूल कर हेडन जैसा हो गया।पढ़ने वालों से अनुरोध है कि नयी बनियान जरूर ले लें।

4 comments:

दिलीप मंडल said...

बढ़िया, जोरदार और मजेदार। अच्छा लगा पढ़कर, बधाई।

ghughutibasuti said...

हम्म!
घुघूती बासूती

CG said...

ये व्यंग्य पढ़कर आनंद आ गया. आपने समाज की समस्याओं को सही तरह से उघाड़ा है. मुबारक.

वनमानुष said...

आप सभी को बहुत धन्यवाद.

घुघुती बासूती जी ने सिर्फ "ह्म्म" लिख छोडा है तो उनके लिए धन्यवाद अभी पेंडिंग है.