Feb 23, 2008

कौन हैं महात्मा गाँधी? क्या किया उन्होंने देश के लिए?

३-४ गांधी विरोधी फिल्मे देखकर जब युवा अपने आपको इतिहासविद समझने लगता है, तो वह कुछ इसी तरह के सवाल किया करता है। गांधी को नीचा बताने के लिए सुभाष और भगत के नाम का सहारा लिया जाता है और उनके नामों के सहारे अपना पक्ष सुदृढ़ करने की भरसक कोशिश की जाती है। गांधी को बदनाम करना आसान है, हिन्दुओं को ये बताओ कि गांधी ने पाकिस्तान को इतने रुपये देने के लिए अनशन किया, जनेऊ धारियों को ये बताओ कि गाँधी एक जमादार का काम ख़ुद किया करते थे, और दलित से कहो कि गांधी राजनीति में दलितों के आरक्षण के धुर विरोधी थे। जनता को फुरसत नहीं होती इन सब के पीछे का कारण समझने की। बस एक बार जहाँ एक विराट हस्ती के लिए जन गण मन में घृणा के बीज बो दिए जाएं तो समय समय पर गाँधी के विरोध में अनाप शनाप काल्पनिक बातें लिखकर नफरत के पौधे को सींचते रहो।

दरअसल गांधी एक सॉफ्ट टार्गेट रहे हैं, गोडसे के लिए भी और साईबर युग के युवाओं के लिए भी। गांधी का अपमान करने के लिए कोई खतरा नहीं उठाना पड़ता। ठाकरे के बारे में कोई यदि सच भी बोले तो पिट जाए, और गांधी के बारे में कोई लाख ऊटपटांग गाता फिरे, झूठ फैलाता रहे तो भी वो मजे से खुलेआम घूम सकता है। अपनी जबरन की हेकडी, और व्यर्थ के मद में चूर आजकल का युवा शायद अपने आपको नेताजी सुभाष( जो गांधी को राष्ट्रपिता कहने वाले प्रथम व्यक्ति थे ),रवींद्रनाथ टैगोर(जिन्होंने गाँधी को महात्मा का दर्जा दिया),भगत सिंह(जिन्होंने बापू को सदैव पितातुल्य आदर दिया) और अन्य सारे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी( जिन्होंने सत्य को अपना धर्म और गांधी को अपना मार्गदर्शक जानकर देश को स्वतंत्रता दिलवाई),से भी ज्यादा ज्ञानवान और बुद्धिमान समझते हैं, इसीलिए वे गांधी का अनादर करने में ज़रा भी नहीं हिचकते।

आसान है, अपने लैपटॉप और कंप्यूटर के सामने बैठकर क्रांतिकारियों की तौहीन करना। वातानुकूलित कमरे में बैठकर स्वतंत्रता संग्राम की खामियां निकालना, कैफे कॉफी डे और बरिस्ता में चुस्कियाँ लेते हुए महान लोगों की खिल्ली उडाना। जिन्होंने पीर पराई और परोपकार का मर्म न समझा हो, उन युवाओं से और उम्मीद ही क्या की जा सकती है। जिन्हें नैतिक शिक्षा ही ना मिली हो उनकी सोच बीमारू न होगी तो क्या होगी।

खैर जब बीमारी लाइलाज हो जाती है तो दुआ काम आती है, ये दुआ राष्ट्रपिता ने अपने बच्चों के लिए की थी
"सबको सन्मति दे भगवान्"

9 comments:

Deep Jagdeep said...

देश के महानायक के प्रति ऐसे विचारों के लिए आभार

अमिताभ मीत said...

शिशिर भाई,
आप के मन की पीड़ा समझ में आती है. लेकिन क्या आप को सच में आश्चर्य होता है इन बातों पर ? जिस देश में social agenda नेता और राजनैतिक दल तय करते हों, या हम ऐसा होने देते हों, जहाँ विद्या बस अर्थकरी हो, और जिस देश में किसी बाबा का नाम लेकर साक्षात इश्वर को ही गाली देने वाले लोग हों, उस देश में बापू कौन ??

वैसे मैं ये बात अच्छी तरह जानता हूँ कि गांधी को मात्र ५ प्रतिशत भी कोई समझ ले, तो मेरा दावा है कि ..... ख़ैर अब जो हालात हैं इस देश के, वो इंसान बस ख़ामोश हो जायेगा.. शिशिर भाई, ऐसे बहुत से ख़ामोश लोग भी हैं .... कमसकम मुझे तो इस बात का इत्मिनान है.

said...

गांधीजी एक अति विशिष्ट इंसान थे. मेरे लिए तो आज भी सोचना मुश्किल है कि उन जैसा कोई कभी रहा होगा? आज की MTV पीढ़ी का हीरो तो राज ठाकरे है!
सौरभ

कुन्नू सिंह said...

गांधी जी कि बात हि कुछ और है। कुछ लोगो के वीरोध करने से उन्का नाम पर भि कोइ आसर नही पडॆगा।

Pramendra Pratap Singh said...

आपकी बात की कद्र करता हूँ, मैने अपने ब्‍लाग के लेख http://pramendra.blogspot.com/2007/11/blog-post_12.html पर आपकी टिप्‍पणी देखा और आपके विचार जान कर काफी अच्‍छा लगा।

किन्‍तु मै इतना ही कहना चाहूँगा कि हर व्‍यक्ति पूर्ण नही होता है न मै, न आप, न ही गांधी जी, कुछ मायनों में मै गांधी जी को अपना आदर्श मानता हूं किन्‍तु यह कह देना कि गाधी जी ही इस देश के सर्वेसर्वा थे तो यह गलत है।

बधाई आप अच्‍छा लिखते है।

Sanjeet Tripathi said...

आमीन!!

बालकिशन said...

आपका लेख पढ़कर एक दिली खुशी महसूस हो रही हैं.
समय समय आप जैसे लोगों द्वारा ये खुराक दी जानी बहुत जरुरी है.
वरना ये मानसिक रूप से बीमार लोग बार-बार फ़िर गाँधी को मार देने की कोशिश करतें रहेंगे.

संजय बेंगाणी said...

गाँधी महान थे : सहमत

गाँधी ही महान थे : असहमत

गाँधीजी की आलोचना (नीन्दा नहीं) करने वाले असंस्कारी, ठाकरे को आदर्श मानने वाले, वातानुकूलित कमरों में रहने वाले हैं ऐसा सोचते है तो आपको अपनी सोच पर पूनर्विचार करना चाहिए.

अंधा विरोध और अंधा समर्थन दोनो ही गलत है.

वनमानुष said...

धन्यवाद दीप भाई.

मीत जी- आप ठीक कहते हैं, मुझे भी इस बात का इत्मिनान है, पर दुःख तब होता है जब इस खामोशी का गलत फायदा उठाया जाता है.

सौरभ भाई- सच कहते हैं आप, आइन्स्तीनी सच.

कुन्नू जी-जी बिलकुल, आकाश की ओर कीचड उछालने पर आकाश गन्दा नहीं होता.

महाशक्ति जी(प्रमेन्द्र जी)- गांधीजी सर्वेसर्वा थे यह तो किसी ने भी नहीं कहा.स्वयम गाँधी ने खुद को सर्वेसर्वा नहीं माना.गांधीजी पूर्ण नहीं थे, यह भी सच है,क्योंकि कोई इंसान कभी पूर्ण नहीं होता.पर गांधीजी आम इंसानों से अधिक साहसी थे क्योंकि उन्होने कभी अपनी कमियों और त्रुटियों पर परदे नहीं डाले.गाँधी-भगत अथवा गाँधी-सुभाष में वैसे ही मतभेद थे जैसे कि किसी भी बाप-बेटे में होते हैं, ये पीढियों का अंतर हर स्थान पर पाया जाता है, एक ही काम को करने के अलग अलग तरीके. पर मतैक्य न होने के बाद भी उनमे परस्पर प्रेम और आदरभाव था, बिलकुल एक परिवार की तरह. आज यदि वे सब जीवित होते, तो गाँधी आपकी "तुलनात्मक समीक्षा" को तो शायद हंसी में टाल जाते पर राष्ट्रपिता के अपमान के एवज में आपको शायद नेताजी सुभाष और भगत के कोप का भाजन बनना पड़ता.पीढियों का अंतर यहाँ भी दिखता है.नहीं दिखता क्या? :)

बाल किशन जी- बस महोदय,आप लोगों की सकारात्मक प्रतिक्रियाएं देख ये प्रयास सफल होता सा दिख रहा है.

संजय जी- महाशय,सुझाव देना और आलोचना करना सबसे आसान कार्यों की श्रेणी में आते हैं, यह मैं लिख चूका हूँ.किसी महान हस्ती की आलोचना करने का अधिकार आपके और मेरे जैसे तुच्छ मनुष्यों को कदापि नहीं है.
मैं यही बात बार बार कह रहा हूँ कि क्या मैं और आप सुभाष, भगत,टैगोर और विनोबा भावे से बड़े हो गए हैं?क्या कारण है कि गांधी की जो त्रुटियाँ आपको दिखती हैं वो इन्हें नहीं दिखीं? क्या ये आप से कम कुशल समीक्षक थे या इनमे गांधी की आलोचना का साहस नहीं था? या ये सब लोग गांधीजी के अंधभक्त थे? यदि इन्होने कभी महात्मा गांधी की आलोचना या निंदा नहीं की, तो हमें जो इनके पैरों की धूल भी नहीं हैं, ये अधिकार किसने दे दिया?
मैं तो पुनर्विचार कर ही रहा हूँ आप भी करें कि कहीं आप अपने पूर्वजों के बलिदान से अर्जित की हुई स्वतंत्रता का दुरूपयोग तो नहीं कर रहे?
आपने एक बात बड़े पते की कही, अँधा विरोध और अँधा समर्थन दोनों ही गलत है, ये बात आप पर भी शब्दशः उतनी ही लागू होती है जितनी कि मुझपर. :)