Feb 1, 2008

आओ तुम्हे झुग्गी में ले जाऊं !


पिन से लेकर प्लेन तक,औरत की आबरू से लेकर देश की इज्जत तक, भारत में सब बिकाऊ है।भारत को दुनिया का उभरता बिग बाज़ार ऐसे ही नहीं कहते।आजकल इस बाज़ार ने एक नया माल उतारा है "गरीबी"।

५०० एकड़ से भी ज्यादा विस्तृत क्षेत्र में फैला धारावी एशिया के सबसे बडे स्लम (झुग्गी बस्ती) के रुप में जाना जाता है आज भारत के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है।दुनिया भर के पर्यटक यहाँ के रहन सहन का अध्ययन करने आते हैं। धारावी में आने वाले विदेशी पर्यटकों की संख्या कभी कभी गोआ कार्निवाल और खजुराहो के मंदिर देखने वालों को भी पार कर जाती है।क्या इसका ये मतलब निकाला जाये कि बीते सालों में विदेशियों की अभिरुचियों में बदलाव आये हैं और अब उन्हें सागरतटों और सेक्स से विरक्ति हो चली है? या फिर वे खुद को ये समझाने आते हैं कि "देखो दुनिया कितनी गरीब है,फटेहाल है,ऊपरवाले का शुक्र है कि हम ऐसे नहीं हैं"। मुझे तो ये भी समझ नहीं आ रहा कि इसे महाराष्ट्र पर्यटन मंत्रालय की उपलब्धि समझा जाए या बेशर्मी।सुना है प्राइवेट टूरिज्म कंपनियों के टूरिस्ट पैकेज में स्लम टूर भी शामिल किया जाने लगा है।

चुनाव के आते ही धारावी के कायाकल्प की बातें सुनाई देती हैं,सौ से लेकर हजार करोड़ तक की बातें होती हैं।अचानक ही सब राजनेता "मी मुम्बईकर" हो जाते हैं।चुनाव के समय विरार-धारावी विरार-धारावी,और चुनाव के बाद जुहू-बांद्रा जुहू-बांद्रा हो जाते हैं। चुनाव जीतते ही धारावी आँखों में दिखाई नहीं पड़ती।सावन का अँधा हरा देखता है,मुम्बई के अंधे बालीवुड की चमक देखते हैं।एक राजनेता कहते हैं "कौन कहता है धारावी गरीब है,४५ अरब रुपये का सालाना व्यापार करता है धारावी।"जी सरकार,आप जैसा कहो मालिक। हम तो सुनने के लिए बैठे हैं,आपको चुनने के लिए बैठे हैं।

वैसे हर विदेशी सैलानी भारत की खिल्ली उडाने के इरादे से धारावी जाता हो, ऐसा भी नहीं है।कुछ लोग वहाँ जाकर अच्छा काम करते हैं।कुछ लोग हर साल वहाँ के स्कूलों के लिए चन्दा इकठ्ठा करके आते हैं।विदेशी एन जी ओ धारावी के कारीगरों की मदद के लिए हमेशा आगे आते रहते हैं।पर देशी राजनेता वहाँ फटकते भी नहीं.कभी कभी तो शक होता है कि असली मुम्बईकर कौन है?

खैर ऋतिक रोशन के घर में मटमैला पानी आने की खबर के बाद से इस समय तक, मुम्बई महानगरपालिका का अमला उनके घर के पानी की पाइपलाइन सुधारने में तत्परता से जुटा हुआ है, क्योंकि हर नागरिक को साफ पीने का पानी दिलाना उनका कर्तव्य है।उधर धारावी में एक जर्मन छात्रों का दल खुद से बनाए हुए सस्ते वाटर फिल्टर बाँट रहे हैं, ताकि वहाँ दूषित पानी से होने वाली बीमारियों पर काबू पाया जा सके।

5 comments:

Ashish Maharishi said...

नई जानकारी के लिए शुक्रिया

anuradha srivastav said...

अफसोस होता है ये सब देख कर। हद है धारावी की जिन्दगी पर्यटन का केन्द्र हो रही है।

वनमानुष said...

आशीष भाई,धारावी के बारे में सारी जानकारी बी बी सी हिंदी से उधार ली गयी है.

बाल भवन जबलपुर said...

kya khoob likhate ho mulakaat sambhav hai kya

वनमानुष said...

हाँ हाँ क्यों नहीं गिरीश जी...आप से मिलकर हर्ष होगा तथा और सीखने को मिलेगा.